भारत सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए बासमती चावल के निर्यात पर से न्यूनतम मूल्य (फ्लोर प्राइस) को हटाने का फैसला किया है। यह निर्णय बासमती चावल के निर्यात को बढ़ावा देने और वैश्विक बाजार में इसकी प्रतिस्पर्धात्मकता को बनाए रखने के उद्देश्य से लिया गया है।
बासमती चावल, जो भारत की प्रमुख जीआई (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) किस्मों में से एक है, के निर्यात में लगातार सुधार लाने के लिए यह निर्णय किया गया है। वर्तमान में, भारत में चावल की घरेलू उपलब्धता पर्याप्त है, और निर्यात के संबंध में व्यापारिक चिंताओं को भी ध्यान में रखा गया है। इस कदम से बासमती चावल के निर्यात को गति मिलने की उम्मीद है, जिससे भारत के किसानों और निर्यातकों को महत्वपूर्ण फायदे मिलेंगे।
एक रिपोर्ट के अनुसार बासमती चावल के निर्यात में इस साल 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने मिली है, खासकर सऊदी अरब और अमेरिका में भी भारत के बासमती चावल की मांग देखने मिल रही है।
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) को निर्यात अनुबंधों की बारीकी से निगरानी का कार्य सौंपा गया है। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि बासमती चावल के निर्यात में किसी भी प्रकार की मूल्य निर्धारण से संबंधित अनियमितता न हो। इसके साथ ही, निर्यात कार्यप्रणालियों में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए एपीडा निरंतर निगरानी रखेगा।
अगस्त 2023 में, चावल की घरेलू आपूर्ति में कमी और घरेलू बाजार में चावल की कीमतों में तेजी के कारण सरकार ने अस्थायी रूप से बासमती चावल के निर्यात के लिए न्यूनतम मूल्य 1,200 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन निर्धारित किया था। इसका उद्देश्य निर्यात के दौरान गैर-बासमती चावल को गलत तरीके से बासमती चावल के रूप में निर्यात होने से रोकना था। बाद में, अक्टूबर 2023 में, व्यापार निकायों की मांगों के बाद, इस मूल्य को तर्कसंगत बनाकर 950 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन कर दिया गया था।
अब, न्यूनतम मूल्य हटाने के साथ, सरकार को उम्मीद है कि बासमती चावल के निर्यात में नई ऊँचाइयाँ देखने को मिलेंगी।