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Sesame Cultivation Information Guide in Hindi: तिल की खेती जानें तिल की नई किस्म की विशेषता, लाभ और खेती का तरीका

Sesame Cultivation Information Guide in Hindi: तिल की खेती जानें तिल की नई किस्म की विशेषता, लाभ और खेती का तरीका
Sesame Cultivation Information Guide in Hindi: तिल की खेती जानें तिल की नई किस्म की विशेषता, लाभ और खेती का तरीका

मध्य प्रदेश में खरीफ मौसम में तिल की खेती एक प्रमुख किसानी गतिविधि है, जिसमें लगभग 315 हजार हेक्टेयर भूमि शामिल हैं। प्रदेश के विभिन्न जिलों में तिल की खेती की जाती है। इसकी औसत उत्पादकता हर हेक्टेयर पर 500 किलोग्राम तक पहुंचती है। हल्की रेतीली, दोमट भूमि तिल की खेती हेतु उपयुक्त होती हैं। तिल की बोनी मुख्यतः खरीफ मौसम में की जाती है जिसकी बोनी जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के मध्य तक करनी चाहिये। ग्रीष्मकालीन तिल की बोनी जनवरी माह के दूसरे पखवाडे से लेकर फरवरी माह के दूसरे पखवाडे तक करना चाहिए। खेती हेतु भूमि का पी.एच. मान 5.5 से 7.5 होना चाहिए। भारी मिटटी में तिल को जल निकास की विशेष व्यवस्था के साथ उगाया जा सकता है। तिलहन फसलों में सरसों, मूंगफली, सूरजमुखी के साथ ही तिल का भी अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। तिल का प्रयोग सर्दियों में गजक, रेवड़ी, तिल के लड्डू बनाने में किया जाता है। इसके अलावा तिल से तेल भी प्राप्त होता है। तिल के तेल का उपयोग आयुर्वेदिक हेयर ऑयल बनाने में किया जाता है। तिल का तेल बालों और त्वचा के लिए भी फायदेमंद होता है।

तिल की नई कांके सफेद किस्म:
देश में तिल की खेती को बढ़ाने के लिए नई किस्मों और तकनीकों का उत्थान किया गया है, और हाल ही में झारखंड के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने इस क्षेत्र में एक बड़ी कदम साधा है। इस विशेष किस्म का नाम है "कांके सफेद," जो किसानों को गरमा और खरीफ दोनों सीजन में लाभान्वित करने का अवसर प्रदान करता है। तिलहन फसल के विशेषज्ञ डॉ. सोहन राम ने बताया कि इन किस्मों का विकसन उपयुक्त कांके सफेद किस्म को विकसित करने के लिए किया गया है, जिससे किसानों को अधिक उत्पादन की संभावना है।  

तिल की नई किस्म कांके सफेद की विशेषता और लाभ:

इसकी अवधि सिर्फ 75-80 दिन है, जिससे किसानों को तेजी से उत्पादन की संभावना होती है।  इसकी उपज क्षमता प्रति हेक्टेयर 4-7 क्विंटल और तेल की मात्रा 42 से 45 प्रतिशत तक होती है, जो उच्च गुणवत्ता वाला तिल तेल प्रदान करता है। गरमी मौसम में सिंचाई साधन पर इसकी खेती का अधिकतम लाभ हो सकता है, क्योंकि धान की परती भूमि में मौजूद नमी इसे और भी सशक्त बना सकती है। इस किस्म की खेती का लाभ खरीफ मौसम में प्रदेश के लिए होता है, और "कांके सफेद," "कृष्णा," और "शेखर" इस सीजन के लिए अनुशंसित हैं। इन किस्मों की उपज क्षमता 6-7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और 42 से 45 प्रतिशत तक तेल की मात्रा सुनिश्चित है। 

इस तरह से करें तिल की खेती होगा अच्छा उत्पादन:

तिलहन फसल विशेषज्ञ डॉ. राम के अनुसार, बेहतर तिल की खेती के लिए आपको उन्नत तकनीकों और सुस्त प्रबंधन का सही संयोजन बनाए रखना होता है। एक हेक्टेयर में बुआई के लिए 5 से 6 किलोग्राम तिल के बीज की आवश्यकता है और खरीफ में वर्षा की शुरुआत होते ही, जून से मध्य जुलाई तक बुआई की जा सकती है। बुआई के समय, कतार से कतार की दूरी को 30 सेंटीमीटर और पौधा से पौधा की दूरी को 10 सेंटीमीटर बनाए रखना चाहिए। हल्की सिंचाई से भूमि में नमी को बनाए रखने के लिए बुआई के समय हल्की सिंचाई भी करना चाहिए। इसके साथ ही, 52 किलो ग्राम यूरिया, 88 किलो ग्राम डीएपी, और 35 किलो ग्राम म्यूरिएट ऑफ पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से पोषण भी प्रदान करना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए पहली निकाई-गुड़ाई बुवाई के 15-20 दिनों के बाद और दूसरी निकाई-गुड़ाई 30-35 दिनों के अंदर करें। इस तकनीकी और प्रबंधन से सही समय पर सही उपायों का अनुसरण करने से, किसानों को कम लागत में उच्च गुणवत्ता वाले तिल की खेती करके बेहतर मुनाफा हासिल हो सकता है। ये भी पढ़ें... आज का मंडी भाव | मंडी भाव

उपयुक्त भूमि एवं उन्नत तकनीकियों का उपयोग:

हल्की रेतीली और दोमट भूमि तिल की खेती के लिए उपयुक्त हैं। इस खेती के लिए भूमि का पीएच मान 5.5 से 7.5 होना चाहिए। भूमि की भारी मिटटी में, तिल को जल निकास की विशेष व्यवस्था के साथ उगाया जा सकता है। तिल की खेती दोनों सीजन के लिये उपर्युक्त तथा पानी की आवश्यकता 
गरमा मौसम में खेतों में सीमित सिंचाई सुविधा होने पर किसान गरमा तिल की सफल खेती कर सकते है। गरमा में 10-15 दिनों के अंतराल में 5-6 सिंचाई की जरूरत होती है, जबकि खरीफ मौसम में वर्षा आधारित खेती से और खरपतवार के उचित प्रबंधन से बेहतर उपज एवं लाभ लिया जा सकता है। बता दें कि गरमा फसलें मई-जून में बोई जाती हैं और जुलाई-अगस्त में काट ली जाती हैं। यानि ये रबी और खरीफ के बीच के समय में बोई जाती है। यह कम लागत एवं कम सिंचाई में उपजाई जाने वाली तिलहनी फसल है। विवि ने तिल की कांके सफेद प्रभेद विकसित की है। यह प्रभेद प्रदेश के लिए उपयुक्त एवं अनुशंसित है। झारखंड के किसान गुजरात एवं सौराष्ट्र के किसानों की तरह दोनों मौसम में तिल की सफल खेती से अच्छा लाभ अर्जित कर सकते हैं।

वैज्ञानिक प्रबंधन से बेहतर उत्पादन: ये भी पढ़ें... Benefits of Mechanization in Agriculture in Hindi: खेती में मेकेनाइजेशन कृषि यंत्र और मशीनों द्वारा ऊर्जा का सही उपयोग
तिलहन फसल विशेषज्ञ डॉ. राम बताते हैं कि एक हेक्टेयर में बुआई के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बुआई के समय हल्की सिंचाई करना और खरपतवार के उचित प्रबंधन से किसानों को अधिक लाभ हो सकता है। झारखंड के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने नई तकनीकों के विकास के माध्यम से तिल की नई किस्में प्रकट की हैं, जिनसे किसान कम पानी और कम लागत में तिल की खेती कर सकते हैं। तिल की खेती से हम सिर्फ लाभ नहीं उठा रहे हैं, बल्कि स्वस्थ भूमि की रक्षा करके आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित भविष्य भी बना रहे हैं।

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