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Coconut Cultivation in Hindi: किसान भाइयों नारियल की फसल को लगा डाला तो लाइफ होगी झिंगालाला, जानें पूरी जानकारी

Coconut Cultivation in Hindi: किसान भाइयों नारियल की फसल को लगा डाला तो लाइफ होगी झिंगालाला, जानें पूरी जानकारी
किसान भाइयों नारियल की फसल को लगा डाला तो लाइफ होगी झिंगालाला

नारियल उत्पादन तकनीकि नारियल असंख्य किसान परिवारों की आजीविका है। नारियल के उत्पादन एवं खेती के क्षेत्रफल की दृष्टि से केरल का भारत में पहला स्थान है। कृषकों द्वारा वैज्ञानिक फसल विधियों का पालन कम रूप से ही किया जाता है। नारियल की खेती से आय बढ़ाने प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर उच्च उत्पादन क्षमता प्राप्त करने और कृषि का खर्च कम करने की विधियों का उपयोग कृषकों को करना चाहिए। नारियल को तमिलनाडु आंध्रप्रदेश और कर्नाटक राज्य में उगाया जाता है।

नारियल की खेती में आवश्यक पोषक तत्व Essential nutrients in coconut cultivation:

नारियल विभिन्न प्रकार की जलवायु तथा मृदा में उगाया जाता है। नारियल ताड़ केवल निचली भूमि में ही सीमित होती है। इसकी खेती उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में की जाती है। समीपवर्ती स्थानों में नारियल के उत्पादकता वाले बाग लगभग 1000 मी. तक की ऊँचाई पर लगाए जा सकते हैं। वर्ष भर में 200 सें. मी. में नारियल ताड़ से उच्च उपज प्राप्त की जा सकती है। कम वर्षा वाली जगह में सिंचाई की आवश्यकता होती है।
फल लगने एवं अधिक उपज करने हेतु रोपाई के प्रथम वर्ष से ही नियमित रूप से खाद देना आवश्यक है। मानसून के प्रारंभ में मई-जून माह में रोपाई की जाए तो तीन महीने बाद अगस्त-सितम्बर माह में प्रथम खाद का प्रयोग करना चाहिए। नारियल ताड़ के लिये प्रतिवर्ष 500 ग्रा. नाइट्रोजन 320 ग्रा. फासफोरस तथा 1200 ग्रा. पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए उर्वरक 1 कि.ग्रा. यूरिया 1.5 कि.ग्रा. मसूरिफोस या राकफास्फेट या 2 कि.ग्रा. म्यूरिएट आफ पोटाश का प्रयोग करें। रोपाई के बाद ही खाद का प्रयोग करना चाहिए। अगस्त सितबंर माह में 1.8 मीटर और 25 सेमी. गहराई के थाले नारियल वृ़क्ष के चारों ओर बनाकर उनमें 25 किग्रा. प्रति ताड़ हरी पत्तियाँ या कंपोस्ट डालें। नारियल के पत्ते को पीला पड़ने से बचाने के लिये सितबंर-अक्टूबर माह में प्रति ताड़ आधा कि.ग्रा. मैगनीशियम सल्फेट प्रयोग करना चाहिए। जैविक खाद के रूप में गोबर कंपोस्ट हरी पत्तियाँ वर्मीकंपोस्ट आदि का उपयोग करें।

नारियल की लंबी और अच्छी प्रजातियाँ:

  1. केराचंद्रा- चालीस वर्ष के पहले फिलीपाइन से लाया गया एक प्रजाति है। इस प्रजाति से वर्ष में 114 नारियल प्राप्त होते हैं तथा 189 ग्रा. खोपरा और तेल 60 प्रतिशत प्राप्त होता है।
  2. चन्द्रसंकरा- यह संकर किस्म का प्रजाति है जिसके पेड़ 3-4 वर्ष के अंदर फलने लगेगा। 116 नारियल तथा खोपरा 215 ग्रा. प्राप्त होता जाता है। तेल की मात्रा 6.8 प्रतिशत है।
  3. अनंतगंगा-यह संकर छठे वर्ष फलने लगता है और इसकी औसत पैदावार प्रति वर्ष 95 नारियल है। 215 ग्रा. खोपरा तथा 68 प्रतिशत तेल प्राप्त होता है।

इस तकनीकि से करें नारियल की सिंचाई Irrigation of coconut with this technique:

नारियल के ताड़ में पष्चिमी घाट की परिस्थितियों में दिसंबर से मई तक सिंचाई आवश्यक है। जहाँ थालों की सिंचाई विधि अपनाई जाती है वहाँ 4 दिन के अंतराल में 200 ली/ताड़ देना चाहिए। जहाँ सिंचाई जल का अभाव है वहाँ बूँद-बूँद सिंचाई कर सकते हैं। इस प्रकार 30-32 लीटर/ताड़ पानी की आवश्यकता होती है। मिश्रित फसलों की खेती में फुहार विधि से सिंचाई कर सकते हैं। रिसाव विधि द्वारा सिंचाई करने से ज्यादा लाभ है। इसमें थाले में नली द्वारा सिंचाई की तुलना में 36 प्रतिशत पानी की बचत होती है।

कैसे होती है नारियल की खेती तथा बीज फलों का चयन How is coconut cultivation and selection of seeds and fruits::

अच्छी जल निकासी स्थानों में टीला तैयार करना चाहिए। अगर खुले जगहों में है तो गर्मी के दिनों में छाया प्रदान करना चाहिए। लंबाई तथा चैड़ाई डेढ़ मीटर पर टीले तैयार करना चाहिए। दो टीले के बीच 75 से.मी. की दूरी चाहिए। यदि जल निकास कम हो तो टीले पर बीज फलों की बुवाई करना चाहिए। मानसून के शुरूआती में मई-जून महीने में बीत फलों को टीले पर बोना चाहिए। बीजफलों के बीच की दूरी 30 से.मी. होनी चाहिए। पंक्ति से पंक्ति के बीच की दूरी 30 सें. मी. होनी चाहिए। टीले पर 25-30 से.मी. गहराई में गढ्ढा खोदकर बीजफलों को उसमें बोना चाहिए। बोने के बाद केवल बीज फल के ऊपरी भाग को मिट्टी के ऊपर दिखाकर बाकि भाग मिट्टी से ढ़क देना चाहिए। नारियल वृक्ष के आकार के अनुसार नारियल पौधों के बीच 7.5 मी. की दूरी रखनी चाहिए। प्रति हेक्टर 175 वृक्ष लगाये जा सकते हैं। यदि नारियल को त्रिभुजाकार लगाया जाता है तो 20 से 25 ताड़ लगाये जा सकते हैं। हेज विधि से भी नारियल के ताड़ लगाये जा सकते हैं। 

इस प्रकार नारियल पौधों का चयन करें:

नारियल पौधे के रोपाई के लिये एक वर्ष आयु का पौधा नर्सरी से चुन लेना चाहिए। पौधों में कम से कम 6 पत्ते और 10 सें. मी. कालर होना चाहिए। अच्छे पौधों का अंकुरण पहले ही होता है। ऐसे पौधों को रोपाई के लिये नहीं चुनना चाहिए जिसका अंकुरण छह महीने के अंदर नहीं होता है और वृद्धि कम हो। 

नारियल का उपयोग: नारियल स्वास्थ्य वृद्धि के लिये लाभदायक है। नमक पानी में डुबोकर नमकीन चिप्स चिनी और नमक मिला चिप्स आदि बनाया जाता है। बिस्कुट, मिठाई एवं हलवाई पदार्थ तथा बनाने के लिये इस्तेमाल किया जाता है। पूरी तरह पके एवं सूखे नारियल की खोपड़ी से बढ़िया खोपड़ी कोयला प्राप्त हो जाता है। नारियल दूध से बनाए नारियल तेल की भारत में बहुत अधिक बाजार संभावना होती है। आयुर्वेदिक औषधि निर्माण शिशु मालिश आदि में किया जाता है। प्राकृतिक सिरका का कृत्रिम सिरके के स्थान निर्यात बाजार में बड़ी माँग होती है। भारत में नारियल का आधा तोड़ने के लिये पारंपरिक छूरे का इस्तेमाल किया जाता है।

पौध संरक्षण: मुख्य कीट एरियोफिड कीट राइनोसेरस बीटिल पत्ती खानेवाला रामिल इल्ली आपिसिना एरेनोसेल्ला ताड़ की लाल घुन रिंकोफोरस फेरूजीनस जड़ खानेवाला सफेद ग्रब है। बचाव- नीम तेल में सम्मिलित एजाडिराक्टिन रसायन एरियोफिड कीट के विरूद्ध प्रयोग करना चाहिए।  एरियोफिड कीट नियंत्रण के लिये एक लीटर पानी में 20 लीटर नीम का तेल 20 ग्रा. लहसुन 5 ग्रा. साबुन के मिश्रण का छिड़काव भी प्रभावी है।

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