देश में बढ़ती आधुनिकता के साथ खाद्य सुरक्षा और सुस्त जल संसाधनों की आवश्यकता तेजी से बढ़ रही है। लोगों के रहन-सहन में बढ़ते प्रदूषण से जलवायु परिवर्तन भी तेज रफ्तार से हो रहा है। इस सबको देखते हुए जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, मृदा उत्पादकता की गिरावट, जंगलों की कटाई और बाढ़ से बचाव की जरूरत उठ रही है। इसके लिए एग्रोफॉरेस्ट्री एक अच्छा समाधान है। एग्रोफोरेस्ट्री कृषि और पेड़ों की परस्पर क्रिया है, जिसमें पेड़ों का कृषि उपयोग भी शामिल है। इसमें खेतों पर और कृषि परिदृश्य में पेड़, जंगलों में खेती और वन मार्जिन और वृक्ष-फसल उत्पादन शामिल हैं। यह एकीकृत भूमि प्रबंधन की एक कम लागत वाली विधि है जहां नकदी फसलों के साथ पेड़ों की खेती की जाती है। एग्रोफोरेस्ट्री का उपयोग करके किसान अपनी जमीन के साथ संतुलन बनाए रख सकते हैं और अच्छे उत्पादन की गारंटी प्राप्त कर सकते हैं। किसानों के लिए बहुत लाभदायक होने के साथ एग्रोफॉरेस्ट्री के कई दूसरे फायदे भी हैं। यह कृषि भूमि में पारिस्थितिक संतुलन को फिर से स्थापित करता है, मिट्टी के कटाव और पानी के अपवाह को रोकता है, आय के वैकल्पिक विकल्प प्रदान करता है, और स्थानीय मौसम की चरम स्थितियों को कम करता है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, दुनिया भर में 1.2 बिलियन से अधिक लोग लगभग 1 बिलियन हेक्टेयर में कृषि वानिकी यानी एग्रोफॉरेस्ट्री करते हैं। भारत की बात करें तो देश में 13.5 मिलियन हेक्टेयर में एग्रोफोरेस्ट्री का अभ्यास किया जाता है, लेकिन इसकी क्षमता कहीं अधिक है।
कृषि वानिकी मौजूदा समय की मांग है। लगातार कम होती कृषि योग्य भूमि पर बढ़ती जनसंख्या का दबाव है, वह जल्द ही विश्व में खाद्यान्न संकट एवं वैश्विक पर्यावरण के लिए संकट का कारण बनेगा। अत: जलवायु परिवर्तन से लड़ने, रोजगार सृजन, खाद्य सुरक्षा की समस्या को दूर करने, वनोन्मूलन के संकट से निपटने इत्यादि अनेक मोर्चों पर कृषि वानिकी एक सशक्त हथियार है।
एग्रोफोरेस्ट्री पेड़ों पर आधारित खेती है। इसमें खेतों में परंपरागत फसलों के साथ-साथ पेड़ लगाए जाते हैं। किसानों के लिए आमदनी के रूप में फायदेमंद होने के साथ-साथ इसके और भी बहुत से लाभ हैं। यह खेतों में पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने में, मिट्टी के कटाव और पानी के बहाव को रोकने में, किसानों को आय का वैकल्पिक स्रोत देने में सहायक है। एग्रोफोरेस्ट्री का उपयोग करके किसान अपनी जमीन के साथ संतुलन बनाए रख सकते हैं और अच्छे उत्पादन की गारंटी प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा, एग्रोफोरेस्ट्री पेड़ों की वृद्धि और संरक्षण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। पेड़ों की वृद्धि से भूमि की उर्वरता बढ़ती है, जल संग्रह होता है और मिट्टी की जीवात्मक गतिविधियों में सुधार होता है। एग्रोफोरेस्ट्री की विधियों को किसान अलग अलग भूमि पर प्रयोग कर सकते हैं। विशेष रूप से एग्रोफोरेस्ट्री छोटे किसानों और अन्य ग्रामीण लोगों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उनकी खाद्य आपूर्ति, आय और स्वास्थ्य को बढ़ा सकता है। एग्रोफोरेस्ट्री सिस्टम बहुक्रियाशील प्रणालियां हैं जो आर्थिक, सामाजिक सांस्कृतिक और पर्यावरणीय लाभों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान कर सकती हैं।
एग्रोफोरेस्ट्री तीन प्रकार की होती है।
एग्रोफोरेस्ट्री का इतिहास
एग्रोफोरेस्ट्री की आधुनिक क्रियाएं भले ही 20वीं सदी में उभरा हो, पर इसकी जड़ें प्राचीन हैं। रोमन एरा में कृषि वानिकी का उल्लेख है। भारत की बात करें तो देशवासी रामायण में लिखित उद्यान अशोक वाटिका को कृषि वानिकी प्रणाली का एक उदाहरण मानते हैं। इस वाटिका में पौधे और फल देने वाले पेड़ शामिल थे। आज भी भारत में पेड़ों और कृषि फार्मों से जुड़े कई रिवाज हैं। 1970 के दशक से, अन्य देशों द्वारा की गई पहल के अनुरूप, भारत सरकार ने भी कृषि वानिकी के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा दिया है। भले ही सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं द्वारा कृषि को महत्व दिया गया था पर कुछ विशेषज्ञों ने कहा कि विभिन्न सरकारी नियमों को कृषि वानिकी को आगे बढ़ाने में एक बाधा के रूप में देखा गया।
कृषि वानिकी के लाभ
भारत में एग्रोफॉरेस्ट्री
भारत में कृषि वानिकी को लेकर चुनौतियां
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